पहरेदार चमगादड़ और उल्लू
एक बहुत बड़ा नन्दन वन था। इसकी चर्चा अच्छे खुशहाल जंगलों में की जाती थी सभी जानवर अपना-अपना काम करते और शाम को इकट्ठे हो कर घूमते-फिरते , गप्पें मारते। इस जंगल को जानवर अच्छे और मेहनती थे लेकिन उस के पड़ोस के जंगल के जानवर चोर थे। वे अकसर रात के नन्दन वन में चोरियां कर भाग जाते । इसलिए नन्दन वन में रात को बिल्लू चमगादड़ पहरेदारी का काम करता। जब से बिल्लू ने अपना काम सम्भाला , जंगल में चोरी वगैरह की घटना नहीं हो रही थी।
अचानक जंगल में अशान्ति फैल गई। हुआ यह कि बिल्लू चमगादड़ का एक दोस्त शहरी गीनू गिद्ध जंगल में आया। उससे नन्दन वन की शान्ति नहीं देखी गई और उसने बिल्लू को भड़काना शुरू कर दिया। "देखो बिल्लू, जंगल के सारे जानवर बड़े मजे की नींद सोते रहते हैं और तुम हो कि रात-रात भर चौकीदारी का काम करते हो। तुम भी रात भर चैन की नींद सोया करो। किसी के यहां चोरी हो या डकैती , तुम्हें क्या ।"
बिल्लू उसकी बातों में आ गया और उसने पहरेदारी करना छोड़ दिया। इससे जंगल के जानवरों पर संकट आ गया। फिर हर रात किसी न किसी जानवर के यहां चोरी हो जाती। चोर कीमती गहने और सामान वगैरह सब बटोर कर ले जाता। जब जानवरों ने बिल्लू से इस बारे में बात की तो उसने गीनू गिद्ध की बातों में आ कर टका सा जवाब दिया। "तुम लोग रात भर खर्राटे ले कर सोते रहो और मैं तुम्हारे घर की रखवाली करता रहूं । अब यह सब मुझ से नहीं होगा।" बिल्लू ने स्पष्ट कह दिया। इस पर गुल्लू मुर्गा बोला , "तो इस में बुरा क्या है, बिल्लू भाई?
जंगल के सभी जानवर और पक्षी भाईचारे के साथ रह रहे हैं। सभी के कुछ न कुछ सामाजिक दायित्व हैं। मुझे ही देखो , मैं रोज सुबह उठ कर बांग लगाता हूं और सभी को उठाता हूं पर मुझे कभी यह महसूस नहीं हुआ कि आप लोगों पर एहसान करता हूं।"
बिल्लू ने गुस्से में आ कर कहा, "अरे , गुल्लू तूं अपना मुंह बन्द रख । बड़ा आया मुझे समझाने वाला।" जंगलवासियों को बड़ी हैरानी हुई कि आखिर बिल्लू को क्या हो गया है और वह इस तरह का व्यवहार कर रहा है। फिर उनकी समझ में आया कि गीनू गिद्ध के आने से उसमें यह बदलाव आया है। अब जंगलवासियों की समझ में यह नहीं आ रहा था कि रात में पहरेदारी का काम कौन करेगा ?
इस पर खेमू उल्लू बोला, "मुझे रात में घूमना-फिरना बहुत पसंद है और मैं अपनी बड़ी-बड़ी आंखों के कारण रात में भी सब कुछ देख लेता हूं। अब से मैं पहरेदारी करूंगा।" सभी जानवर राजी हो गए। अब रात में उल्लू जंगल में घूम-घूम कर पहरा दिया करता, सो जंगल के प्राणियों को बिल्लू की कमी महसूस नहीं हुई। कुछ दिनों बाद गीनू गिद्ध शहर लौट गया। अब तो जंगल में बिल्लू चमगादड़ को पूछने वाला कोई न था। प्रातः उठ कर सभी जंगलवासी अपना काम करते व शाम को बैठ कर गप्पें मारते । अब न ही कोई बिल्लू से बात करता, न ही उस का हालचाल जानने का प्रयास करता। अब वह पछता रहा था। जंगलवासियों के व्यवहार का बिल्लू पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उस ने खाट पकड़ ली । जब जंगलवासियों को इस बात का पता चला तो वे सब कुछ भूल कर बिल्लू के पास पहुंचे । शीघ्र उस का इलाज करवाया गया। जब बिल्लू थोड़ा ठीक हुआ तो जोर-जोर से रोने लगा व जंगल के अपने साथियों से अपने किए व्यवहार की क्षमा मांगने लगा। सभी ने उसे माफ कर दिया। बिल्लू ने कहा, 'आज मैंने जाना कि अपने आखिर अपने होते हैं। हमें दूसरों की बातों में नहीं आना चाहिए।' तभी मुर्गा बोला, भाई बिल्लू, तुम अपना काम सम्भालो । खेमू भाई, पहरेदारी करते करते थक गया होगा ।
नहीं, मैं नहीं थका हूं। रात में मैं ही पहरेदारी करूंगा , खेमू उल्लू बोला । फिर बिल्लू और खेमू उल्लू दोनों रात में पहरेदारी करने के लिए झगड़ने लगे । तब मुर्गे ने दोनों में समझौता कराया , ऐसा भी तो हो सकता है, तुम दोनों मिल कर पहरेदारी करो । जंगल को दो भागों में बांट कर एक-एक भाग की जिम्मेदारी ले लो । ऐसा करने से किसी एक के ऊपर भार भी नहीं पड़ेगा । सभी जानवरों को मुर्गे का सुझाव पसन्द आया, साथ ही बिल्लू और खेमू भी राजी हो गए । तब से रात में चमगादड़ और उल्लू पहरेदारी करते हैं।
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